देवी घाटा वाली माता जी का मंदिर – उदयपुर के पूर्वी द्वार की रक्षक

चित्तौड़गढ़ के बाद जब मेवाड़ की राजधानी उदयपुर बनी, तब उसके पूर्वी प्रवेश द्वार के पास स्थित घाटा वाला चामुंडा माता जी का मंदिर विशेष महत्व का केंद्र बना। यह पवित्र स्थल वर्तमान में देबारी ग्राम पंचायत में, चित्तौड़गढ़ हाईवे पर स्थित है। मान्यता है कि माता चामुंडा ने इस पूर्वी द्वार की सदैव रक्षा की, विशेषकर मुगल आक्रमणों के समय। कहा जाता है कि संकट की घड़ी में माता की नाभि से निकले मधुमक्खियों के झुंड ने शत्रुओं पर हमला कर उन्हें नाहरा मगरा तक खदेड़ दिया था। तभी से यह मंदिर आस्था का केंद्र बन गया है और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।

देबारी पंचायत के सरपंच चंदन सिंह देवड़ा बताते हैं कि जब उदयपुर-चित्तौड़गढ़ हाईवे का निर्माण हो रहा था, तब मंदिर को हटाने का प्रयास किया गया। परंतु हर बार इंजीनियरों को दूरबीन से एक बालिका दिखाई देती, जिसके हाथ में तलवार और ढाल होते। यह चमत्कारिक अनुभव इतना प्रभावशाली था कि अंततः हाईवे का मार्ग मोड़ना पड़ा। आज भी माता जी की कृपा और चमत्कारों की अनेक कहानियाँ सुनने को मिलती हैं।

रियासतकालीन इतिहास के अनुसार, इसी क्षेत्र में एक बड़ा द्वार और एक छोटी बारी (खिड़की) हुआ करती थी, जिससे आने-जाने वालों की पहचान की जाती थी। इसी ‘बारी’ के कारण इस स्थान का नाम देबारी पड़ा। मंदिर का वर्तमान में जीर्णोद्धार चल रहा है और निकट भविष्य में यह एक भव्य रूप में सामने आएगा।

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