घाटा वाली माता मंदिर: मेवाड़ की शक्ति और आस्था का प्रतीक

महाराणा उदयसिंह ने वर्ष 1559 में उदयपुर के समीप घाटा पर स्थित घाटा वाली माता मंदिर की स्थापना की थी। यह मंदिर उदयपुर शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर, राजस्थान के ऐतिहासिक मेवाड़ क्षेत्र में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि महाराणा उदयसिंह ने इस मंदिर की स्थापना अपनी विजय की कामना और देवी के आशीर्वाद के लिए करवाई थी।

मंदिर का नाम ‘घाटा वाली माता’ उस स्थान पर रखे एक मिट्टी के पिंड से लिया गया है, जिसे उदयसिंह द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था। इस पवित्र स्थल में घाटा वाली माता के साथ-साथ कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं, जो इसे एक समृद्ध आध्यात्मिक केंद्र बनाती हैं।

यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि राजपूताना वास्तुकला की एक अद्भुत मिसाल भी है। इसकी संरचना और वातावरण मेवाड़ की सांस्कृतिक विरासत की झलक देते हैं। घाटा वाली माता की पूजा मेवाड़वासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और यहाँ विशेष पर्वों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

ऐसी मान्यता है कि माता के दर्शन से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि प्राप्त होती है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जीवित है और माता का यह मंदिर मेवाड़ की आस्था की जड़ में बसा हुआ है।

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